अग्निसार धौति क्रिया का अर्थ - विधि, लाभ और सावधानियां
अग्निसार धौति - इस क्रिया द्वारा जठराग्नि को तीव्र करके पाचन शक्ति बढ़ाई जाती है। धौति का अर्थ शरीर की अशुद्धियों को धोकर बाहर निकालने की क्रिया है।
अग्निसार धौति विधि, लाभ और सावधानियाँ की जानकरी इन हिंदी
अग्निसार धौति की विधि -यह क्रिया बैठकर या खड़े होकर भी की जा सकती है। बैठकर अभ्यास करना हो तो किसी ध्यानात्मक आसन में रीढ़ की हड्डी सीधी कर हाथ तनी हुई अवस्था में घुटनों पर रखें। कुछ देर के लिए पेट विश्रांत बनाएँ। मुँह खोलकर जीभ बाहर निकालकर ओठों को गोल बनाकर मुह से पूरी वायु को बाहर निकालना है जब तक पेट पूरी तरह खाली न हो जाए। इसके बाद कुम्भक या श्वास लेना बंद, फिर पेट को जल्दी-जल्दी अंदर-बाहर लगभग 15 बार करें। इसके पश्चात शरीर को शिथिल छोड़कर धीरे-धीरे दस-बारह बार श्वास लेना है। इसके बाद पुनः इस अभ्यास को दोहराया जा सकता है। नाभि को रीढ़ की हड्डी में सटाने का प्रयास करें। इस क्रिया से आंतरिक अंगों की मालिश होती है।
अग्निसार धौति से लाभ - अग्निसार धौति से होने वाले लाभ इस प्रकार हैं-
(1) यह क्रिया उदरस्थ सभी अंगों की क्रियाशीलता बढ़ाती है।
(2) जठराग्नि एवं पाचन क्रिया तीव्र होती है। पेट में उपस्थित कृमि नष्ट होते हैं।
(3) कब्ज, गैस, यकृत विकार, अपच में लाभदायक है।
(4) मणिपुर चक्र की जाग्रति में सहायक है।
अग्निसार धौति की सावधानियाँ - अग्निसार धौति में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(1) प्रात:काल खाली पैंट ही करना चाहिए।
(2) कुशल प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें।
(3) हृदय रोग, पेट में नासूर, हार्निया, दमा आदि से पीड़ित व्यक्ति इसका अभ्यास न करें।
(4) गर्भवती महिला भी इस अभ्यास को न करें।