वस्त्र धौति क्रिया का अर्थ - विधि, लाभ और सावधानियां

वस्त्र धौति विधि -
उकडू बैठकर दोनों पैरों के मध्य पानी से भरे मग या कटोरी में दो इंच चौड़ा और छः या सात गज लंबा कपडा रखकर इसके एक छोर को दोनों सिरों से थोड़ा मोड़कर, जिससे कि वह नुकीला हो जाए और आसानी से गले में उतर सके। इस प्रकार धीरे-धीरे चबाते हुए निगलते हैं। मुँह में 2 या 3 इंच को एकत्र कर उसे थोड़ा चबाते हुए जिससे कि लार की चिकनाई वस्त्र के चारों ओर फैल जाए, इसके बाद कुनकुने पानी के घूँट के साथ वस्त्र को निगलते हैं। पुनः 1-2 इंच मुँह में लेकर उसे एक घूँट पानी पीकर अंदर करते हैं इससे गले में कपड़ा सीधा उतरता है। थोड़ा-थोड़ा कपड़ा ही गले में उतारना अच्छा है। मुँह में अधिक कपड़ा इकट्ठा नहीं करना चाहिए। इसके पश्चात कपड़े को दो से चार मिनट तक पेट में रोक कर भ्रमर नौलि का अभ्यास करना चाहिए। तत्पश्चात इसी अवस्था में धीरे-धीरे दोनों हाथों की अंगुलियों से वस्त्र को मूँह से बाहर खींचते हैं। प्रारभ में पेट में कपड़े को एक मिनट से अधिक नहीं रोकना चाहिए।

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वस्त्र धौति क्रिया के लाभ और सावधानियां की जानकारी इन हिंदी

लाभ - वस्त्र धौति से निम्लनलिखित लाभ होते हैं-
(1) इससे मुँह और पेट की सफाई होती है।
(2) इससे जठराग्नि एवं पाचन क्रिया तीव्र होती है। पेट में उपस्थित कृमि नष्ट होते हैं।
(3) वस्त्र धौति उदरस्थ सभी अंगों की क्रियाशीलता बढ़ाती है।
(4) कब्ज, गैस, यकृत विकार तथा अपच में लाभदायक है।

सावधानियाँ - वस्त्र धौति में निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए-
(।) कपड़े को हमेशा जीभ से सटाकर रखना चाहिए।
(2) लार से लिपटा हुआ कपड़ा थोड़ा-थोड़ा करके गले में उतारना चाहिए। बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पीकर कपड़े को गले में उतारना चाहिए।
(3) प्रारंभ में किसी सुयोग्य प्रश्क्षिक के मार्ग दर्शन में ही करें।
(4) निगलने के बाद कुछ देर तक (एक मिनट) नौलि करना है जिससे कि कपड़ा पेट के सभी भागों तक पहुँचकर वहाँ का कफ, पित्त आदि समेट ले। कपड़े को अधिक देर तक पेट में नहीं रखना चाहिए। इससे कपड़े के नीचे जाने की भी संभावना रहती है।