शीतली प्राणायाम की सावधानियां, लाभ एवं विधि इन हिंदी
शीतली प्राणायाम का अर्थ एवं परिभाषा - इस प्राणायाम के द्वारा संपूर्ण शरीर में शीतलता का प्रसन्नता अनुभव होता है। इस कारण इसे शीतली प्राणायाम कहते हैं।
जिह्यया वायुमाकृष्य पूर्ववत् कुम्भसाधनम्।
शनकेर्ष्राणरज्ध्वाभ्यां रेचयेत् पवन सुधी:॥
जीभ को दोनों ओर से मोड़कर, परनाले की तरह विशेष स्थिति में लाकर, फिर उसके द्धारा वायु अंदर खींचकर पहले की तरह कुंभक का अभ्यास करना चाहिए। पश्चात बुद्धिमान (साधक) धीरे-धीरे नासिका छिद्रों द्वारा वायु का रेचन करना चाहिए।
शीतली प्राणायाम की विधि - किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठें, मेरुदंड सीधा रखें। तत्पश्चात जीभ को थोड़ा बाहर निकालें तथा नाली के आकार से उसे मोड़ें तथा फिर जिह्वा के अग्र भाग से श्वास को खीचें, फिर कुंभक करें तथा जालंधर बंध लगाएँ। कुछ समय पश्चात जालंधर बंध छोड़ दें तथा दोनों नासिका से श्वास बाहर निकाल दें। यह शीतली प्राणायाम है।
शीतली प्राणायाम से लाभ - शीतली प्राणायाम से निम्नलिखित लाभ होते हैं -
(1) यह कुंभक वायु गोला, तिल्ली, ज्वर, पित्त, भूख, प्यास आदि सभी प्रकार के रोगों को तथा विष के प्रभाव को नष्ट करता है।
(2) यह कुंभक कटिशूल तथा पेट दर्द को दूर करता है।
(3) इस प्राणायाम से मन शांत होता है तथा चिड़चिड़ापन दूर होता है। इससे भूख-प्यास पर नियंत्रण प्राप्त होता है और तुष्टि की भावना उत्पन्न होती है।
(4) गरमी के दिनों में पसीना अधिक आता है, प्यास अधिक या बेचैनी अनुभव होती है। इन सभी में यह प्राणायाम बहुत लाभकारी है।
शीतली प्राणायाम की सावधानियां - शीतली प्राणायाम करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -
(1) इस प्राणायाम के बाद एकदम से उठकर तेजी से काम न करें।
(2) यदि इस क्रिया में वायु ज्यादा भर जाए तो पश्चिमोत्तानासान, शीर्षासन, सर्वांगासन, योगमुद्र कर लेना चाहिए।