पंचकर्म चिकित्सा की क्रिया क्या होती है? अर्थ एवं परिभाषा

panchakarma chikitsa kya hai in hindi

पंचकर्म  की परिभाषा, अर्थ एवं जानकारी - हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है (जल, अग्नि, वायु ,पृथ्वी, आकाश) यह हम सभी जानते है। हमारे शरीर को ऊर्जा भोजन से मिलती है, जिससे हमारा शरीर हर समय ऊर्जा में रहता है और भोजन करने से हमारे शरीर में ऊर्जा के साथ – साथ वात, कफ़ और पीत जैसी बीमारियां उत्पन होती है, जो हमारे शरीर को शक्तिहीन और रोगी बना देती और इन रोगों को हम आयुर्वेद में पंचकर्म (वमन, विरेचन, नस्य, रक्तमोक्षण, अनुवासनवस्ति) से ठीक करते है। पंचकर्म हमारे आन्तरिक और बाह्य शरीर की शुद्धि करता है और हमें रोग मुक्त बनता है।

पंचकर्मा चिकित्सा या क्रिया क्या है? - पंचकर्म क्रिया एक आयुर्वेदिक चिकित्सा है यह हमारे शरीर में अनपचा भोजन से उत्पन्न होने वाले मानसिक और शारीरिक विकारों या रोगों का इलाज कर के हमारे शरीर को स्वस्थ बनता है पंचकर्म हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों जैसे - वात, कफ़ एवं पीत जैसे रोगों को बाहर निकालकर हमारे पाचन तंत्र को मजबूत बनाये रखता है पंचकर्म क्रिया या चिकित्सा के द्वारा हमारे शरीर के विभिन्न अंगों जैसे - पाचन तंत्र, फेफड़े, गुर्दे, मूत्राशय, पसीने की बदबू, आदि से अपशिष्ठ पदार्थों को बाहर निकालकर हमारे शरीर को स्वस्थ एवं शुद्ध बनता है यह सब पंचकर्म चिकित्सा या क्रिया के द्वारा ही होता है।

 

पंचकर्म की विधि, प्रकार, लाभ और पंचकर्म में रोगों के उपचार

पंचकर्म मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते है।

1. वमन

2. विरेचन

3. नस्य

4. रक्तमोक्षण

5. अनुवासनवस्ति

panchakarma chikitsa ke prakar in hindi

1. वमन – यह एक शारीरिक शुद्धि क्रिया है, जिसमें विशेष रूप से हमारे अमाशय की नाली एवं थैली की सफाई होती है इस आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा में औषधि का प्रयोग कर के हमारे शरीर में जमा हुवे कफ को उल्टी के द्वारा बाहर निकाला जाता है। वमन चिकित्सा करने के बाद हमारे में उत्पन्न रोगों जैसे - अपच, खट्टी डकार, गैस, जोड़ो के दर्द, अस्थमा, मोटापा इत्यादि रोगों से जल्दी राहत मिलती है।

वमन किन रोगों के लिए है फायदेमंद – (1) हृदय रोग (2) अस्थमा (3) खांसी (4) पाचन तंत्र (6) जुकाम (7) मूत्राशय सम्बन्धी रोग (8) नींद न आना (9) भूख न लगना (10) खट्टी डकार (11) जोड़ो के दर्द (12) मोटापा बढ़ना 
(13) त्वचा रोग।

वमन किन लोगों को नहीं करनी चाहिए - वमन खासकर बूढ़े, बच्चों, ह्रदय रोगी, अधिक रक्तचाप, अधिक मोटापा इन सभी को वमन क्रिया नहीं करनी चाहिए क्योंकि ज्यादातर बूढ़ों और बच्चों का आंतरिक शरीर कमजोर होता है वमन करने से उनके आन्तरिक शरीर को नुकसान पहुँच सकता है।

वमन करने के लिए आवशयक सामाग्री -
1. दो से तीन लीटर पानी
2. सेंधानमक, शहद, कड़वेफल
3. तौलिया विशेष

ध्यान -

1. काढ़े को एक ही साँस में पी लीजिये।
2. वमन करते समय अधिक जोर न लगाए।
3. हाथों के नाखून कटे हो ताकि वे गले को स्पर्श करते समय घाव न पैदा करें।
4. पूर्ण श्रद्धा होने पर ही वमन करें।
5. हृदय एवं अधिक रक्तचाप के रोगी उपचारक की देख − रेख में ही करें।

विधि -

1. जमीन पर पैरों के भार बैठे यानि तलवे जमीन पर हो और एड़ी उठी हो।
2. एक बोतल या लोटे में काढ़े को रखें।
3. फिर काढ़े को पिलाया जाता है।
4. काढ़ा पीने के बाद बायें हाथ को कमर पर रखकर आगे की और झुकें।
5. दायें हाथ की बीच की तीन अंगुलियों से जीभ के अंदर के भाग को दबाये।
6. उल्टी होने पर सारे कफ को बाहर निकलने दें।
7. अंतिम में हाथ मुँह और नाक को पूछकर टोलियाँ से साफ कर लीजिये।

2. विरेचन – जब हमारे शरीर की आंतो में स्थित मल गुदाद्वार से निकल नहीं पता है तो तब विरेचन औषधि को प्रयोग में लाकर आंतो में फँसे स्थित मल या पीत को बाहर निकाला जाता है इस आयुर्वेदिक उपचार में जड़ी बूटियाँ खिलायी जाती है, जो हमारे आन्तरिक शरीर में बने पीत को बाहर निकलती है और हमें स्वस्थ बनाये रखती है, यह आयुर्वेदिक उपचार पीलिया और कब्ज के रोगियों के लिए बहुत फायदेमन्द उपचार है।

विरेचन किन रोगों के लिए है फायदेमंद –

1. अधिक मोटापा
2. अपच सम्बन्धी रोग
3. चर्म रोग
4. कब्ज रोग
5. मूत्राशय और गुदाद्वार में मल
6. मूत्र सम्बन्धी समस्या

किन लोगों के लिए विरेचन सही नहीं है - विरेचन बूढ़ों, बच्चों, शरीर से कमजोर लोगों, अधिक मोटापा वाले लोगों, गर्भवती महिलाओं इन सभी प्रकार के लोगों के लिए विरेचन क्रिया सही नहीं है।

3. नस्य – इस चिकित्सा पद्धति में नाक के द्वारा औषधि से बनाया गया तेल या घी हमारे मस्तिष्क से शरीर में पहुँचाया जाता है, नासा ही शिरसोद्वारम अर्थात नाक मस्तिष्क का प्रवेश द्वार है इसलिए मानसिक तनाव से जुड़ी बीमारियों में नस्य चिकित्सा से उपचार किया जाता है, इस चिकित्सा में हमारे गले और सर के सभी रोग मुक्त हो जाते और सर से अपशिष्ट रोग मुक्त हो जाने पर हमें सरदर्द, माइग्रेन, बालों का झड़ना, आँखों की रोशनी काम होना इत्यादि जैसी बीमारियों से राहत मिलती है।

नस्य के प्रकार

1. प्रधमन नस्य
2. मर्ष नस्य
3. प्रतिमर्ष नस्य

नस्य पंचकर्म में उपयोगी द्रव्य -

1. तेल
2. घी
3. स्वरस
4. जड़ी बूटियों का चूर्ण

नस्य चिकित्सा किन रोगों के लिए फायदेमंद है -

1. पुरानी सर्दी
2. साइनस
3. मसूड़े की परेशानियां
4. कंधों के दर्द
5. गलगंड
6. थाइराइड ग्रंथि में परेशानी
7. बालों की समस्या
8. सरदर्द या माइग्रेन
9. याददास कमजोर होना
10. बोलने की समस्या
11. आँखो की रोशनी की समस्या

विधि - नस्य पंचकर्म स्वस्थ और बीमार व्यक्ति दोनों में की जाती है, इसमें पहले पीठ के बल लिटाकरसिर कान गर्दन नाक पर अच्छे से तेल की मालिश कर भाप दी जाती है जिससे चिपके हुवे दोष पतले होकर निकलने आसानी होती है उसके बाद व्यक्ति के सर को पीछे झुका दिया जाता है फिर चिकित्सक द्वारा दोनों नासिका छिद्रों में औषधि सिद्ध तेल या घी योग्य मात्रा में गुनगुना कर डाल दिया जाता है और रोगी को सूचित किया जाता है की वह इसे नाक से खींच के मुँह के द्वारा बाहर निकालदे और गर्म पानी से कुल्ला कर लें। नस्य पंचकर्म करने के बाद रोगी को 5 से 10 मिनट तक लेटकर आराम करना होता है।

4. अनुवासनावास्ति – इस आयुर्वेदिक चिकित्सा में रोगी के गुदाद्धार से औषधि को शरीर में पहुँचाया जाता है और शरीर के अंदर के वात पीत कफ़ यानि अपशिष्ट पदार्थ को बाहर निकालकर हमारे शरीर की शुद्धि की जाती है अनुवासनावस्ती का उपचार कब्ज, बवासीर और जोड़ो में दर्द जैसी समस्याओं के लिए बहुत उपयोगी उपचार माना जाता है।

अनुवासनावास्ति के प्रकार –

1. निरुह वास्ति
2. अनुवासन वास्ति

1. निरुह वस्ती - निरुह वस्ति इसको आस्थापन वस्ति भी कहते है इसमें औषधि काढ़ा सेंधा नमक सेहद वनस्पति चूर्ण और तेल होता है इसे देने के बाद करीब 15 से 30 मिनट में ये वस्ति द्रव्य शरीर से बहार आ जाता है और साथ में मल वायु कफ़ पीत वात भी बहार आ जाते है, यह वस्ति हमारे आयु को बढ़ाती है और हमें स्वस्थ बनाये रखती है।

2. अनुवासन वस्ति – इस आयुर्वेदिक चिकित्सा में तिल तेल या औषधि सिद्ध तेल गुदा द्वारा शरीर में पहुँचायाजाता है यह तेल रोगी के शरीर में 10 से 12 घंटे तक रहना महत्त्वपूर्ण होता है यह वस्ति खाना खाने के तुरंत बाद दी जाती है और शरीर से अपशिष्ट पदार्थ को निकलने के बाद रोगी स्वस्थ और हर समय ऊर्जावान रहता है।

अनुवासन वस्ति में निम्न रोगों के उपचार – (1) पेट दर्द (2) मलेरिया (3) वात, पीत, कफ़ जैसी समस्याएं (4) कब्ज (5) पेट फूलना (6) मूत्राशय और गुदा द्वार में परेशानी (7) शरीर के जोड़ो में दर्द (8) रूखी त्वचा (9) शरीर में कमजोरी आना (10) बवासीर।

5. रक्तमोक्षण – इस आयुर्वेदचिकित्सा में हमारे शरीर में से दूषित रक्त और पीत को जोंक के द्वारा बाहर निकला जाता है यानि रक्त और पीत दोष वाली समस्याओं में इस आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है।

रक्त मोक्षण के प्रकार –

1. जोंक द्वारा उपचार
2. निडिल यानि सुई द्वारा उपचार

1. जोंक द्वारा उपचार - जोंक को शरीर भिन्न - भिन्न भागो में छोड़ दिया जाता है और वह शरीर से दूषित रक्त को बाहर निकालने में सहायता करती है।

2. निडिल यानि सुई द्वारा उपचार - इस विधि में प्रदूषित रक्त वाले जगह पर निडिल से चीरा या सुई से दूषित रक्त को बाहर निकाला जाता है।

रक्त मोक्षण से निम्न रोगों का उपचार – (1) फोड़े फुंसी (2) नसों में सूजन (3) चेहरे में झुर्रियाँ और लालपन (4) गठिया हाथी पाँव (5) त्वचा रोग (6) शरीर में वात बढ़ना (7) कान नाक पीब आना (8) शरीर का बढ़ना (9) मुँह से बदबू आना (10) लीवर में समस्याएँ (11) स्तन रोग (12) शरीर में गांठे गिल्टियाँ बनना

पंचकर्म क्रिया या चिकित्सा के फायदे और पंचकर्म से नुकसान

1. पंचकर्म आयुर्वेद चिकित्सा के द्वारा हमारे शरीर के अंदर बनने वाले अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकलते है।

2. पंचकर्म हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

3. पंचकर्म हमारे शरीर से दूषित रक्त को बाहर निकालने में सहायता करता है।

4. पंचकर्म गठिया यानि जोड़ो के दर्द के लिए महत्त्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति है।

5. पंचकर्म हमारे शरीर को शुद्ध और हमारे उम्र को बढ़ाता है।

6. पंचकर्म हमारे आन्तरिक शरीर और पाचन शक्ति को मजबूत बनाये रखता है।

7. पंचकर्म हमारे मानसिक और शारीरिक शरीर को शुद्ध एवं रोग मुक्त बनाता है।

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