कुंडलिनी जागरण का अर्थ एवं परिभाषा, सावधानियाँ, लाभ एवं विधि

कुंडलिनी जागरण का अर्थ -संस्कृत में ‘कुंडल’ शब्द का अर्थ है-घेरा बनाए हुए। यह एक परंपरागत मान्यता है। जिसके सही स्वरूप को प्राय: नहीं समझा गया है। वस्तुतः कुंडलिनी शब्द ‘कृ’ धातु से बना है और इसका अर्थ है-कोई गहरा स्थान, छेद या गड्ढा। हवन के लिए जहाँ आग जलाते हैं. भी कुंड कहते हैं। मे के अनुसार कुंडलिनी शब्द का तात्पर्य उस शक्ति से है, जो . निष्क्रिय अवस्था में है, किंतु उस शक्ति के जाग्रत होने पर उसे अपनी अनुभूति के जग महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती अथवा अन्य किसी भी नाम से जाना जाता है।

कुंडलिनी जागरण की परिभाषा –

हठप्रदीपिका के अनुसार –
सशैलवनधात्रीणाम यथाधारोहिनायक:।
सर्वेषां योगतन्त्राणां तथाधारो हि कुण्डली॥

जिस प्रकार सर्पों के स्वामी शेषनाग पर्वत वन सहित सम्पूर्ण पृथ्वी के आधार है, उसी प्रकार संपूर्ण योग तंत्रों का आधार कुंडली है।
कुण्डली ऋटिलाकारा सर्पवत् परिकीर्तिता।
सा शक्तिश्चालिता येन स मुकतो नात्र संशय:॥
कुंडलिनी सर्प के समान टेढ़ी-मेढ़ी आकार वाली बताई गई है। उस कुंडलिनी शक्ति को जिसने जाग्रत कर लिया वह मुक्त है इसमें संदेह नहीं है।

साधारण अवस्था में यह कुंडलिनी सोई हुई अवस्था में रहती है तथा सुषुम्ना के मुख को बंद किए हुए रहती है। इसका उदाहरण एक ऐसी सर्पिणियों के समान दिया जा सकता है जो साढ़े तीन लपेटे खाए अपनी पूँछ को मुँह में दबाए शंकु के आकार में सो रही है। यह इतनी सूक्ष्म है कि इसको स्थूल आँखों से देखा नहीं जा सकता केवल योगाभ्यास के द्वारा अनुभव किया जा सकता है।योगियों का कहना है कि इसका रंग लाल है और वह विद्युत के कणों से भरी हुई है।

योग विज्ञान के अनुसार – ”कुंडलिनी सारे संसार की आधारभूत तथा मानव शरौर में स्थित जीवन अग्नि है। शास्त्रों में इसे ब्राह्मी शक्ति कहा गया है। यह शक्ति ही जीव के बंधन एवं मोक्ष का कारण है।”

मैडम ब्लेवेटस्की के अनुसार – “’कुंडलिनी विश्वव्यापी सूक्ष्म विद्युत शक्ति है, जो स्थूल बिजली की अपेक्षा कहीं अधिक शक्तिशाली है। इसकी चाल सर्प की चाल की तरह टेढ़ी है, इससे इसे सर्पाकार कहते हैं।”

गति – प्रकाश एक लाख पचासी हजार मील प्रति सेकंड चलता है। पर कुंडलिनी की गति एक सेकंड में 345000 मिल है।

घेरण्ड सहिंता के तीसरे अध्याय के 44, 45 श्लोक में कहा गया है – मूलाधार में आत्म शक्ति सबसे परे कुण्डलनी देवी सर्प के आकार की साढ़े तीन लपेट की कुंडली (गोला )बांधकर सोई रहती है। जब तक वह देह में सोती रहती है तब जीवन पशु की तरह अज्ञानके अंधकार में बंधे रहते है। जब तक सत्य और असत्य का ज्ञान नहीं होता तब तक कितने ही प्रकार के योगाभ्यास क्यों न करें, अंधकार में दुबे रहते है। योगी लोग इस नाड़ी को जगाने के लिए प्राण का आश्रय लेते है। उनका मत है कि प्राणायाम के द्धारा कुंडलनी में एक प्रकार का आघात लगता है।

कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया | कुंडलिनी जागरण की अवधारणा हिंदी

कुंडलिनी

कुंडलिनी जागरण की अवधारणा –

शास्त्रकारों एवं तत्वदर्शियों ने इस संबंध में अपने – अपने अनुभव के आधार पर कई मत व्यक्त किए हैं। ज्ञानार्णव तंत्र में कुंडलिनी को विश्व जननी और सृष्टि संचालिनी शक्ति कहा गया है – ”शक्तिः कुंडलिनी विश्वजननी व्यापार बद्धेयता। ” विश्व व्यापार एक घुमावदार उपक्रम के साथ चलता है। परमाणु से लेकर ग्रह-नक्षत्रों और आकाश गंगाओं तक की स्थिति परिभ्रमण परक है। आत्मा का परिभ्रमण भी कुछ इसी तरह से है। कुंडलिनी सृष्टि संदर्भ में समष्टि और जीव संदर्भ में शक्ति संचार करती है।
उपनिषदों में भी कुंडलिनी शक्ति की चर्चा हुई है। कठोपनिषद् में यम-नचिकेता संवाद में जिस पंचाग्नि विद्या की चर्चा हुई है, उसे कुंडलिनी शक्ति की पंच-विधि विवेचना कहा जा सकता है। श्वेताश्वतर उपनिषद्‌ में उसे योगाग्नि कहा गया है।

जान बुडरफ सरीखे तत्वान्वेषियों ने उसे ‘सर्पेट पावर” नाम दिया है। महान साधिका मैडम ब्लेवेटस्की ने इसे ‘कॉस्मिक इलेक्ट्रिसिटी’ कहा है। ईसाई परंपरा में बाइबिल में ‘साधकों का पथ’ अथवा ‘स्वर्ग का रास्ता’ नाम से कुंडलिनी शक्ति के जागरण को ही बताया गया है। इन सभी कथनों का सार यही है कि आध्यात्मिक जीवन में जो कुछ भी होता है, वह कुंडलिनी जागरण से ही संबंधित है। किसी भी प्रकार की योग-साधना का सार कुंडलिनी शक्ति का जागरण ही है।

यह जागरण अति दुष्कर है और बहुत आसान भी। यदि जाग्रत कुंडलिनी नियंत्रित न की जा सके, तो वह फिर महाकाली बनकर प्रलय के दृश्य उपस्थित करती है और यदि उसे नियंत्रित करके अर्थपूर्ण बनाया जा सके, तो यही शक्ति दुर्गा का सौम्य रूप ले लेती है। योग-साधकों के अनुभव के अनुसार अचेतन कुंडलिनी का प्रथम स्वरूप काली एक विकराल शक्ति है, जिसका शिव के ऊपर खड़े होना, उसके द्वारा आत्मा पर पूर्ण नियंत्रण को व्यक्त करता है।

कुछ लोग कभी-कभी मानसिक अस्थिरता के कारण अपने अचेतन के संपर्क में आ जाते हैं, जिसके फलस्वरूप अशुभ और भयानक भूत-पिशाच दिखाई देने लगते हैं। परंतु जब साधक की अचेतन शक्ति का जागरण होता है, तो यह ऊर्ध्वगमन के बाद आनंद प्रदायिनी, उच्च चेतना दुर्गा का रूप धारण कर लेती है।

कुंडलिनी जागरण के साथ ही जीवन में आमूलचूल परिवर्तन होने लगते हैं। कुंडलिनी के जाग्रत होते ही हमारे मन में परिवर्तन आता है। हमारी प्राथमिकताओं और आसक्तियों में परिवर्तन आता है। हमारे सभी कर्मों को परिवर्तन की इस प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस बात को कुछ यूँ भी समझा जा सकता है कि बचपन में हम सभी खिलौनों के लिए लालायित रहते हैं, परंतु बाद में सारी मनोवृत्तियाँ बदल जाती है। इसी प्रकार कुंडलिनी जागरण के साथ ही एक प्रकार रूपांतरण प्रारंभ हो जाता है। उस समय सम्पूर्ण जीवन के सुव्यवस्थित एवं पुनर्गठित होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

 

कुडलिनी जागरण से होने वाले परिवर्तन, सामान्यतया सकारात्मक होते हैं, परंतु यदि मार्गदर्शन सही न हो तो ये नकारात्मक भी हो सकते हैं। जब शक्ति का जागरण होता है तो शरीर की सभी कोशिकाएँ पूरी तरह से चार्ज (क्रियाशील) हो जाती हैं और कायाकल्प की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। आवाज बदल जाती है, शरीर की गंध बदल जाती है।

शरीर में होने वाले हारमोन के स्राव भी परिवर्तित हो जाते हैं। शरीर और मस्तिष्क की कोशिकाओं का रूपांतरण सामान्य अवस्था से कहीं अधिक तेज गति से होने लगता है। सच तो यह है कि एक बार इस महान शक्ति के जागरण के बाद मनुष्य निम्नस्तर के मन या निम्न प्राणशक्ति द्वारा संचालित होने वाला स्थूल शरीर नहीं रह जाता, बल्कि उसके शरीर की प्रत्येक कोशिका कुंडलिनी की उच्च प्राणशक्ति से भर जाती है।

कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया –

इस महान उपलब्धि को कैसे पाएँ ? अर्थात कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया को कैसे संपन्न करें अथवा कुंडलिनी योग की साधना किस तरह करें ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में हम यहाँ सरल, निरापद उपायों की चर्चा करेंगे। सामान्य क्रम में प्रचलित साधनाओं में हठयोग की कठिन प्रक्रियाओं की चर्चा सुनने को मिलती है। इससे होने वाले लाभ निश्चित रूप से अधिक हैं, तनिक-सी असावधानी होने पर हानियाँ इतनी अधिक हैं कि साधक का समूचा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। फिर उसे बचा पाना किसी के लिए संभव नहीं होता। इसलिए ऐसी जटिल प्रक्रियाओं को न अपनाना ही श्रेष्ठ व श्रेयस्कर है।

कुंडलिनी साधना का सरलतम उपाय है – गायत्री महा मंन्त्र का नियमित जप। यह एक बहुत शक्तिशाली, सरल एवं निरापद मार्ग है। परन्तु इसमें अपेक्षाकृत अधिक समय तथा धैर्य की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार किसी शांत झील में कंकड़ फेकने पर उसमे  तरंगे उत्पन्न होती है, उसी प्रकार मंत्रो को बार – बार दोहराने से मनरूपी समुद्र में तरंगे उत्पन्न होती है। लाखों – करोड़ों बार गायत्री मन्त्र के जप से अस्तित्व का कोना-कोना झंकृत हो जाता है। इससे अपने शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनों स्तरों की शुद्धि हो जाती है।

 

इस साधना में आवश्यकता यह है कि गायत्री महामंत्र का जप मानसिक स्तर पर, भावनात्मक प्रगाढ़ता के साथ मंद गति से किया जाए। ऐसे ढंग से मंत्र का जप करने से कुंडलिनी जागरण बिना किसी परेशानी के सही ढंग से हो जाता है। साधना के इस क्रम में उपासना-काल के अतिरिक्त भी श्वास के साथ हर पल गायत्री महामंत्र के जप में साधक को संलग्न रहना चाहिए।

कुंडलिनी जागरण की इस साधना को और अधिक तीत्र एवं प्रखर बनाने के लिए गायत्री महामंत्र के जप के साथ तप के अनुबंधों का होना आवश्यक है। ध्यान रहे कि तपस्या शुद्धिकरण की एक क्रिया है उसे ठंढे पानी अथवा कड़ी धूप में खड़े रहने जैसी अन्य हरकतें मानकर भ्रमित नहीं होना चाहिए। तपस्या का निहितार्थ संस्कारों एवं वासनाओं का समूल क्षय है।

इसके रहस्य को आचार्य पं० श्रीराम शर्मा जी ने गायत्री महाविज्ञान के प्रथम खंड में विस्तार से बताया है। गायत्री महाविज्ञान के प्रथम भाग में ‘पापनाश्क एवं शक्तिवर्द्धक तपश्चर्याएँ’ शीर्षक के अंतर्गत विधियों को अपनाकर इस साधना की तीव्रता को और अधिक बढ़ाया जा सकता है।

इन प्रक्रियाओं को जीवन में आत्मसात करके यदि प्रातःकालीन कई घंटे गायत्री महामंत्र की साधना की जाए, तो कुंडलिनी शक्ति के जागरण के संकेत साधक को मिलने लगते हैं। लगातार छह वर्षी की इस साधना के साथ ही योग साधक पर जाग्रत कुंडलिनी का अमृत बरसता है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन में विशेषताओं और विभूतियों की संपदा अनायास ही अंकुरित और पल्लवित होने लगती है। जिसके सतत अभिवर्द्धन के लिए समर्थ सदगुरु का संरक्षण अनिवार्य है।

इसे भी पढ़ें – प्राण (pran) क्या है परिभाषा, अर्थ एवं प्रकार इन हिंदी

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अजितेश कुँवर, कुँवर योगा, देहरादून के संस्थापक हैं। भारत में एक लोकप्रिय योग संस्थान, हम उन उम्मीदवारों को योग प्रशिक्षण और प्रमाणन प्रदान करते हैं जो योग को करियर के रूप में लेना चाहते हैं। जो लोग योग सीखना चाहते हैं और जो इसे सिखाना चाहते हैं उनके लिए हमारे पास अलग-अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं। हमारे साथ काम करने वाले योग शिक्षकों के पास न केवल वर्षों का अनुभव है बल्कि उन्हें योग से संबंधित सभी पहलुओं का ज्ञान भी है। हम, कुँवर योग, विन्यास योग और हठ योग के लिए प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, हम योग के इच्छुक लोगों को इस तरह से प्रशिक्षित करना सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे दूसरों को योग सिखाने के लिए बेहतर पेशेवर बन सकें। हमारे शिक्षक बहुत विनम्र हैं, वे आपको योग विज्ञान से संबंधित ज्ञान देने के साथ-साथ इस प्राचीन भारतीय विज्ञान को सही तरीके से सीखने में मदद कर सकते हैं।

 

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About Kunwar Ajitesh

Mr. Ajitesh Kunwar Founder of Kunwar Yoga – he is registered RYT-500 Hour and E-RYT-200 Hour Yoga Teacher in Yoga Alliance USA. He have Completed also Yoga Diploma in Rishikesh, India.

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