प्लावनी प्राणायाम की सावधानियां, लाभ एवं विधि इन हिंदी
प्लावनी प्राणायाम का अर्थ एवं परिभाषा -विशेषण शब्द प्लावनी ' कुंभक की विशेषता बताता है और यहाँ पर संज्ञा के रूप में प्रयुक्त है। यह ' प्लु' धातु के कारणवाचक रूप में है जिसका अर्थ 'तैरना' है। अतः प्लावनी का अर्थवह प्राणायाम है जो व्यक्ति को तैरने योग्य बनाता है।
अंतःप्रवर्तितोदारमारुतापूरितोदर:।
पयस्यगाधेपि सुखात्प्लवते पद्मपत्रवत् ॥
श्वास नली द्वारा उदर में प्रचुर मात्रा में वायु भरकर योगी कमल पत्र के समान गहरे पानी की सतह पर भी सरलता से तैर सकता है।
प्लावनी प्राणायाम की विधि - किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर अपने आप को प्राणायाम के लिए तैयार करते हैं। दो प्रकार से पूरक कर सकते हैं-दोनों नासा छिद्र से श्वास खींचकर पेट को भरते हैं या काफी मात्रा में मुँह से श्वास खींचते हैं और भोजन की भाँति उसे निगलते हैं। पेट में धारण करते हैं, बाहर नहीं निकालना है। इस प्रकार वायु को 30 से 90 मिनट तक धारण करने का अभ्यास करना चाहिए।
प्लावनी प्राणायाम से लाभ -प्लावनी प्राणायाम से निम्न लाभ होते हैं -
(1) यह गैस्ट्रिक तथा वायु विकार में लाभदायक है।
(2) इसका साधक जल में ही कमल पत्र के समान तैरता है।
प्लावनी प्राणायाम संबंधी नियम एवं सावधानियां -
प्राणायाम करते समय और करने से पूर्व कुछ नियम होते हैं, जिसका ज्ञान होना अति आवश्यक होता है -
(1) प्राणायाम करने का स्थान स्वच्छ, हवादार, शांतिमय एवं पवित्र होना चाहिए। प्राकृतिक स्थान, नदी-सरोवर का तट, पहाड़ आदि उत्तम हैं।
(2) प्राणायाम का अभ्यास ध्यानात्मक आसन में बैठकर करना चाहिए।
(3) कमर, गरदन, मेरुदंड, छाती को सीधा रखें।
(4) आहार-विंहार का क्रम व्यवस्थित होना चाहिए।
(5) प्राणायाम के लिए प्रातः एवं सायंकाल का समय उपयुक्त माना जाता है।
(6) प्राणायाम के अभ्यासकर्त्ता का भोजन हलका, सात्त्विक तथा स्निग्ध होना चाहिए।
(7) ब्रह्मचर्य के पालन का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
(8) प्राणायाम शौच से निवृत्त होने के बाद करना चाहिए।
(9) निर्बल व्यक्ति को कठिन प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
(10) प्राणायाम का अभ्यास प्रारंभ में 40 से 5 मिनट तक करें। इसके बाद धीरे-धीरे बढ़ाएँ।
(11) प्राणायाम करते समय मन और शरीर को शांत एवं स्थिर रखना चाहिए। साथ-साथ पवित्र एवं सकारात्मक भावना करनी चाहिए।
सारांश -आज आधुनिकता की अंधी दौड़ एवं वैज्ञानिकता की चकाचौंध में संपूर्ण मानव समाज अपने आप को असहाय सा पाता है। अपने अंदर जीवनी शक्ति की कमी को महसूस करता है एवं इस कारण वह रोगग्रस्त होता जा रहा है। इस स्थिति के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका हमारे वर्तमान जीवन का वातावरण, खान-पान और रहन-सहन आदि निभा रहे हैं। रोगग्रस्त व्यक्ति न तो अपना कल्याण कर पाता है और न ही समाज का। कहा भी गया है-' पहला सुख निरोगी काया।
प्राणायाम के स्वरूप, प्रभाव और रहस्य की जानकारी मिलने पर उसी के अनुरूप जीवन में उतार लिया जाए तो व्यक्ति गूढ़ से गूढ़ रहस्यों को प्राप्त कर सकता है। यह औषधियों तथा पश्चिमी व्यायाम पद्धति के खर्चीले यांत्रिक साधनों से कई लाख गुना फलदायक है।
यह भारत की प्राचीन निधि है। इसी के सहारे ऋषिगण अपने को स्वस्थ रखकर अध्यात्म पथ पर अग्रसर होते थे। यह बहुत से चमत्कारी परिणामों से पूर्ण है। इससे शारीरिक , मानसिक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक विकास किया जा सकता है।
प्राणायाम एक ठोस वैज्ञानिक क्रिया है। यदि इसे विधिवत किया जाए तो उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं। किंतु भूल करने पर अथवा पूर्ण विधि के अभाव में इससे लाभ के बजाय हानि भी हो सकती है। इसलिए प्राणायाम की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के बाद ही प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।