भ्रामरी प्राणायाम की सावधानियां, लाभ एवं विधि इन हिंदी

भ्रामरी प्राणायाम का अर्थ एवं परिभाषा - भ्र्मर = भौंरा। इस प्राणायाम में साधक भँवरे की गुंजन होने के समान आवाज करते हुए श्वास - प्रश्वास करते है। इस प्राणायाम में भ्र्मर के जैसी गुंजन होने के कारण इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते है। वेग से भ्रमर गुंजार के समान आवाज करते हुए पूरक करना चाहिए तत्पश्चात भ्रामरी के गुंजन के समान आवाज करते हुए धीरे-धीरे रेचक करना चाहिए। इस प्रकार अभ्यास करने से उत्तम साधकों के चित्त में एक अपूर्व आनंद लीला की उत्पत्ति होती है।

bhramari pranayam karne ki vidhi in hindi

भ्रामरी प्राणायाम की विधि -किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर अपने दोनों हाथों की उँगलियों से दोनों कानों को सहज रूप से बंद करके तथा आँखों को बंद करके पूरक करने के पश्चात् रेचक करते हुए भ्रमर के गुंजन के समान आवाज करते हुए यह अभ्यास पूर्ण किया जाता है।

भ्रामरी प्राणायाम से लाभ - भ्रामरी प्राणायाम से निम्नांकित लाभ होते हैं -

(1) इस प्राणायाम से क्रोध चिंता एवं अनिद्रा का निवारण होता है।

(2) यह आवाज को मधुर एवं मजबूत बनाता है।

(3) यह गले के रोगों का निवारण करता है।

(4) इससे चंचल मन एकाग्र होता है।

(5) इससे उक्त रक्तचाप में कमी होती है।

भ्रामरी प्राणायाम की सावधानियाँ -भ्रामरी प्राणायाम हेतु निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -

(1) इस प्राणायाम का अभ्यास लेटकर नहीं करना चाहिए।

(2) हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को बिना कुंभक के यह अभ्यास नहीं करना चाहिए।

(3) कानों में संक्रमण होने पर इसका अभ्यास न करें।