मूर्च्छा प्राणायाम की सावधानियां, लाभ एवं विधि इन हिंदी
मूर्च्छा प्राणायाम का अर्थ एवं परिभाषा - मूर्च्छा का अर्थ होता है - बेहोश हो जाना। इस प्राणायाम के द्वारा साधक विषय जगत की चेतना से मूर्च्छित हो जाता है जिसके कारण इसका नाम मूर्च्छा प्राणायाम पड़ा।
पूरकान्ते गाढतरं बद्ध्वा जालन्धरं शनैः।
रेचयेन्मूर्च्छनाख्येयं मनोमूर्चछा सुखप्रदा॥
पूरक कर लेने के बाद अति दृढ़तापूर्वक जालंधर बंध लगाकर धीरे-धीरे वायु का रेचक करें। यह मूर्च्छा नामक कुंभक मनोमूर्च्छा लाने वाली तथा सुख देने वाली है।
मूर्च्छा प्राणायाम की विधि - किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठते हुए ज्ञान मुद्रा लगाएँ, फिर दोनों नासिका से पूरक करते हुए कुंभक करें तथा जालंधर बंध लगाएँ। कुछ देर हुभक कहने के बाद इंजन को को छोड़कर रेचक करें। इससे गले में घर्षण होता है। बार-बार घर्षण हुए रेचक-पूरक करें। यह मूर्च्छा प्राणायाम है।
मूर्च्छा प्राणायाम से लाभ - मूर्च्छा प्राणायाम के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं -
(1) जो व्यक्ति इस प्राणायाम को क्र लेता है उसे आत्मानंद की प्राप्ति होती है।
(2) इस अभ्यास से सम्पूर्ण शरीर एवं मस्तिष्क को विश्राम मिलता है।
(3) इस प्राणायाम से व्यक्ति का बहिर्मुखी स्वभाव स्वतः ही अंतःर्मुखी होने लगता है।
मूर्च्छा प्राणायाम की सावधानियाँ - इसमें निम्नांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
(1) उच्च खतचाप, सिर में चक्कर आना, मस्तिष्क में चोट लगी हो, हृदय, फेफड़ों से पीड़ित व्यक्तियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए।
(2) मूर्च्छ प्राणायाम का अभ्यास इतना अधिक नहीं करना चाहिए कि बेहोश हो जाएँ।