नाड़ी शोधन प्राणायाम की विधि, लाभ एवं सावधानिया इन हिंदी

नाड़ी शोधन प्राणायाम - प्राणायाम के पूर्व नाड़ी शुद्धि को आवश्यक माना गया है। नाड़ी शोधन क्रिया का अभ्यास अपने शरीर के भीतर प्राण को चलाने की क्रिया है, प्राण को जाग्रत करने की क्रिया है। लेकिन प्राण की जागृति और प्राणों का स्वतंत्र प्रवाह तभी संभव है जब हमारे भीतर की सभी नाड़ियाँ अवरोध रहित बन जाये क्योंकि-

nadi shodhana pranayama kya hai in hindi

मनुष्य के रहन-सहन में अज्ञान अथवा प्रमादवश जो भूले हो जाती है उनके कारण उसके शरीर में मल वृद्धि होती रहती है। यह मल वृद्धि केवल भोजन पचाने वाली आंते और मलाशय में ही नहीं होती वरन्‌ उस मल में से दूषित गैसें निकल कर रक्त-प्रवाह में मिल जाती है और शरीर के समस्त नाड़ी जाल को गन्दा और अवरूद्द बनाया करता है। हमारे शरीर में 72 हजार नाड़िया इन नाड़ियों में किसी न किसी प्रकार अवरोध उत्पन्न होने से व्याधियाँ उत्पन्न होता है।

नाड़ियों के शुद्ध होने से रक्त का प्रवाह अबाध गति से समस्त शरीर में बहने लगता है। और उसकी चैतन्यता, स्फूर्ति, शक्ति पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ जाता है। इसके लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम विशेष रूप से प्रभावशाली सिद्ध होता है।

नाड़ी शोधन प्राणायाम के प्रकार, विधि की जानकारी इन हिंदी

nadi shodhana pranayama ke prakar in hindi

नाड़ी शोधन प्राणायाम के प्रकार -हमारे शरीर में अनेक नाड़ियां है जिस प्रकार हार में फूल गुथे रहते है, उसी प्रकार ये नड़िया आपस में गुथी हुई है, उलझी हुई है और उनकी उलझन से प्राणशक्ति के प्रवाह में बाधा पड़ती है अतः जब तक इन नाड़ियों का सुधिकरण न हो, तब तक व्यक्ति प्राणायाम का अभ्यास नहीं कर सकता।
योग ग्रंथों में 72 हजार नाड़ियों का उल्लेख किया जाता है, पर उनमें से 14 ही मानी गई है, जिसमें तीन प्रमुख है, वे है -

1. सुषुमा
2. इंड़ा
3. पिंगला
4. गान्धरी
5. हस्तजिव्हा
6. कुहू
7. सरस्वती
8. पूषा
9. शंखिनी
10. यशस्विनी
11. वारूणी
12. अलम्बुसा
13. विश्वोधरा
14. पयस्विनी

शरीरस्थ सूक्ष्म केन्रीय नाड़ी मंडल मस्तिष्क और मेरूदण्ड को मिलाकर बना है। इन दोनों को जोड़ने वाला मेडुला आब्लांगेटा है। इस संस्थान का श्वास-प्रथ्वास की स्वसंचालित प्रक्रिया से सीधा संबंध है। मस्तिष्क एवं मेरूदण्ड दोनों में ही सेरेत्रों स्पाइनल द्रव्य तैरते है। मेरूदण्ड के पीले भाग से होकर ब्रहम नाड़ी मूलाधार से लेकर सहस्रार तक पहुचती है। विशेष महत्वपूर्ण तथा चेतन तत्वों का सूक्ष्म प्राण संचार इसी पीले भाग में होकर होता है।
नाड़ियों की मलीनता के कारण आत्मिक प्रगति संभव नहीं, ऐसा उल्लेख योग ग्रन्थों में मिलता है।
शिव संहिता में कहा गया है- जब नाड़ी शुद्धि होगी तब दोष शुद्द होगी उसी स्थिति में योग का आरंभ संभव है।

हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है - जिस समय नाड़ियों की शुद्धि होती है। उस समय के चिन्ह है - शरीर की कृशता और कांति में निश्चित रूप से वृद्धि होना।

नाड़ी प्राणायाम शोधन के प्रकार -समनु और निर्मनु के भेद से नाड़ी शोधन के दो प्रकार है -

1. समनु - बीज मन्त्र के साथ होने वाले नाड़ी शोधन की यह क्रिया मानसिक है। प्रारम्भ में साधक मानसिक रूप से श्वास का ख्याल रखते हुए श्वास के साथ अपनी चेतना को ऊपर - नीचे लाता ले जाता है। इसके बाद गहराई में जानें के लिए श्वास के साथ मन्त्र का अभ्यास करते है और उस बीच मन्त्र के साथ धारणा का भी अभ्यास होता जाता है।

2. निर्मनु - धौतिकर्म से होने वाले नाड़ी शोधन क्रिया शारीरिक है। धौति क्रिया से फेफड़े दोष रहित हो जाते हैं, आंतरिक अंग विकार रहित हो जाते हैं, तब प्राण की जागृति अपने आप होने लगती है और उस समय प्राण को केवल नाड़ी क्षेत्र में भेजने का प्रयास किया जाता है।

नाड़ी प्राणायाम शोधन विधि -

कुशासने मृगाजिने व्याप्राजिने च कम्बले।
स्थूलासने समासीनः प्राड.गमुखो वाप्युदड् मुखः।
नाड़ी शुद्धिं समासाद्य प्राणायार्म समभ्यसेत

अर्थात् कुश का मोटा आसन, मृगचर्म या सिंहचर्म अथवा कम्बल में से किसी प्रकार के आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके नाड़ी शुद्धि प्राणायाम का साधन करना चाहिए।

1. दाहिने नासिका छिद्र को बंद रखे। बाएं से सांस खीचें और उसे धीरे-धीरे नाभि चक्र तक ले जाए। ध्यान करे कि नाभि स्थान में पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्रमा के समान पीतवर्ण शीतल प्रकाश विद्यमान है। खीचा हुआ सांस उसे स्पर्श कर रहा है।
2. जितने समय में सांस खीचा गया था, उतने ही समय तक भीतर रोके और ध्यान करते रहे कि नाभिचक्र में स्थिति पूर्ण चन्द्र के प्रकाश का खीचा हुआ, श्वास स्पर्श करके उसे शीतल और प्रकाशवान बना रहा है।
3. बायीं नासिका छिद्र से ही श्वास बाहर निकाले और ध्यान करे कि नाभिचक्र के चन्द्रमा को छुकर वापस लौटने वाली प्रकाशवान एवं शीतल वायु इड़ा नाड़ी की छिद्र नलिकाओं को शीतल एवं प्रकाशवान बनाती हुई वापिस लौट रहा है। सांस छोड़ने की गति अत्यन्त धीमी है। कुछ देर सांस बाहर रोकिए, बिना श्वास रहे।

आचार्य श्रीराम शर्मा जी के अनुसार - इस तरह तीन तीन बार बाएँ नासिका छिद्र से सांस खीचते और छोड़ते हुए नाभि चक्र में चन्द्रमा का शीतल ध्यान तीन बार दाहिनी नासिका छिद्र से सांस खींचते छोडते हुए सूर्य के उष्ण प्रकाश का ध्यान एक बार दोनो छिद्रों से सांस खीचते हुए मुख से सांस निकालने की क्रिया इन सबसे मिलकर एक पूर्ण नाड़ी शोधन प्राणायाम बनता है। आरम्भ में तीन प्राणायाम से करना चाहिए धीरे - धीरे इसकी संख्या बीस तक पहुँचाई जा सकती है।

नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभ -
1. नियमित इस प्राणायाम का अभ्यास करते रहने से कुछ समय में ही सभी नाडियां मल रहित और शुद्ध हो जाती है।
2. साधक अपने शरीर में हल्कापन और साथ ही शक्ति की अधिकता का अनुभव करने लगता है।

नाड़ी शोधन प्राणायाम सावधानियाँ -
1. प्राणायाम का अभ्यास ब्रम्हमुहूर्त में ही करना चाहिए, दिन के समय नहीं। अर्थात्‌ प्रातः 4 से 6 के बीच।

2. जब वायु मन्द औश्र ठण्डी हो, न ज्यादा ठण्ड हो, न ज्यादा गरमी, तब उस शीतल वायु में प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है।

3.बन्द करे में प्राणायाम का अभ्यास नहीं किया जाता, खिड़की-दरवाजे खोलकर किया जाता है, जिससे शुद्ध वायु का प्रवेश हमेशा होता रहे। लेकिन स्थान इतना हवादार भी न हो कि कमरे के भीतर हवा का झोका लगे।

4. यदि वायु हलकी ठण्डी है, तो चादर ओढ़ लेनी चाहिए या बनियान पहन लेना चाहिए। शरीर को सीधे वायु के सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए।